दसऊ में आयोजित कार्यक्रम में उद्योग मंत्री ने कहा कि पिछले पांच वर्षों से इंतजार कर रहे पश्मी शिलाई क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक समय शुरू हो गया है।
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के पश्मी में प्रवास के लिए चालदा महासू महाराज दसऊ (उत्तराखंड) मंदिर से सोमवार दोपहर बाद बाहर निकले। इसके चलते जहां सिरमौर में ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी है, वहीं जौनसार के दसक गांव और आसपास के दर्जनों गांवों के हजारों लोगों के चेहरे पर मायूसी दिखी। कई भक्तों की आंखों से आंसू बह रहे थे। दरअसल, मई 2023 से चालदा महासू महाराज दसऊ मंदिर में विराजमान थे। इससे पूर्व जौनसार के समाल्टा, कोटी-कनासर में भी प्रवास पर रहे थे। हिमाचल सरकार के उद्योग मंत्री हर्षवर्धन चौहान और ग्रामीण भी पश्मी से दसऊ पहुंचे। उन्होंने दसऊ मंदिर में पूजा-अर्चना की। उद्योग मंत्री दसऊ में आयोजन में शिरकत करते ने कहा कि पश्मी शिलाई क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक पल का आगाज शुरू हो गया है, जिसका पिछले पांच वर्ष से इंतजार था।
देवता के दर्शन करने उमड़ा आस्था का सैलाब
दसऊ में चालदा महाराज के दर्शन के लिए पिछले कई दिनों से ग्रामीणों की भीड़ देखी जा रही थी। चालदा महाराज के वजीर दीवान सिंह राणा ने बताया कि 12 दिसंबर तक महाराज जौनसार के अलग-अलग स्थानों पर प्रवास करेंगे। 13 दिसंबर को हिमाचल में प्रवेश कर द्राबिल में प्रवास रहेगा। 14 दिसंबर को महाराज विधि विधान से मंत्रोचारण के साथ पश्मी मंदिर में विराजमान होंगे। उद्योगमंत्री हर्षवर्धन चौहान ने बताया कि सुरक्षा के लिहाज से 100 से अधिक पुलिस जवान व गृह रक्षक तैनात किए गए हैं। स्वास्थ्य जांच के लिए चिकित्सा शिविर और मार्यों पर यातायात की विशेष व्यवस्था की गई है। उन्होंने लोगों से अपील की कि विनम्रता, श्रद्धा, शांतिपूर्ण माहौल में महासू देवता का स्वागत करें।
पालकी में सवार होकर निकलते हैं न्याय के लिए
चालदा महासू का इतिहास उत्तराखंड और हिमाचल के लोक देवता महासू से जुड़ा है, जो भगवान शिव के रूप माने जाते हैं और न्याय के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। यह चार भाइयों (बामिक, पवासिक, बौठा और चालदा) का समूह है। इनमें से चालदा महासू हमेशा यात्रा प्रवास पर रहते हैं और लोगों को न्याय दिलाते हैं। इनकी पूजा जौनसार बावर, हिमाचल के सिरमौर और शिमला क्षेत्र में होती है। चालदा महासू ऐसे देवता हैं, वे एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते, इसलिए इन्हें छत्रधारी और चालदा महाराज कहा जाता है। ये पालकी में सवार होकर न्याय के लिए निकलते हैं और समस्याओं का समाधान करते हैं। उनकी यात्रा का निर्धारण माली (सेवक) और बकरा करते हैं, यात्रा में फाड़का (तांबे का बर्तन) छत्र और पालकी आगे चलती है जिसके पीछे भक्त चलते हैं ।
Comments