हिमाचल प्रदेश : - त्रासदी ने अपने ही गांव में एक परिवार को छत छीन ली; कहानी भेला गांव, जिला मंडी

हिमाचल प्रदेश के जिला मंडी में एक भेला गांव जहां लोग अपने ही घर में शरणार्थी बनकर रहते हैं सुरक्षित जमीन की कमी के कारण लोग न तो स्थायी घर बना पा रहे हैं और न ही शान्तिपूर्वक सो पा रहे हैं।

मंडी जिले के बालीचौकी उपमंडल के भेला में जमीन धंसने की त्रासदी ने लोगों को अपने ही गांव में शरणार्थी बना दिया है। बीते तीन महीनों से यहां एक दर्जन से अधिक परिवार टीन के शेड और टेंटों में रहने को मजबूर हैं। कड़ाके की ठंड, असुरक्षित जमीन और भविष्य की अनिश्चितता के बीच इन परिवारों का जीवन मानो थम सा गया है। जिन लोगों ने दशकों पहले पीठ पर सामान ढोकर इस दुर्गम क्षेत्र में घर बसाए थे, आज वही लोग अपने ही गांव में शरणार्थी जैसी स्थिति में जी रहे हैं।

प्रभावितों को प्रदेश सरकार से आपदा राहत की पहली किस्त तो मिली लेकिन सबसे बड़ी समस्या जमीन की है, जिसका आज तक कोई समाधान नहीं निकल पाया। नौतोड़ के तहत मिली जमीन भी धंस चुकी है। सुरक्षित भूमि उपलब्ध न होने के कारण लोग न तो स्थायी घर बना पा रहे हैं और न ही चैन की नींद सो पा रहे हैं। कई परिवार दिन में गांव आकर अपने मवेशियों और बचे-खुचे सामान की देखभाल करते हैं और रात को किराये के मकानों या रिश्तेदारों के यहां शरण लेते हैं।

भेला गांव में प्रशासन की मौजूदगी केवल औपचारिकताओं तक सीमित नजर आती है। सर्वे हुए, सूचियां बनीं, लेकिन पुनर्वास की ठोस योजना आज भी कागजों में ही अटकी है। जिन परिवारों के मकान पूरी तरह तबाह हो चुके हैं, उन्होंने शेड और टेंट बनाए हैं। दशकों से बसे इन परिवारों के लिए अब अपने ही गांव में रहने का सपना टूट चुका है। प्रभावित एक परिवार में छह से दस सदस्य हैं। इस स्थिति में किराये पर कमरे या मकान भी नहीं मिल पा रहे हैं।

उधर, एसडीएम बालीचौकी बिचित्र सिंह ने बताया कि हाल ही में बालीचौकी में पदभार संभाला है। इलाके की स्थिति से पूरी तरह अवगत नहीं हूं। फिलहाल अवकाश पर हूं। ड्यूटी संभालते ही इस मामले में रिपोर्ट ली जाएगी।

जमीन ही नहीं रही, कहां बनाएं घर

तीस वर्षों से यहीं रह रहे हैं। पौने पांच बीघा नौतोड़ की जमीन मिली थी, वह भी धंस गई। दिन में गांव आते हैं और रात को कांढी में किराये के मकान में जाते हैं। परिवार के 11 सदस्य दो कमरों में जैसे-तैसे रह रहे हैं। - जानकी देवी

ढाई बीघा जमीन पूरी तरह धंस गई। जमीन ही नहीं रही तो घर कहां बनाएं। पचास साल से यहीं रह रहे हैं, पहले कभी ऐसा नहीं हुआ। अब पुराने क्षतिग्रस्त मकान में रहने को मजबूर हैं। - ओम चंद

बालीचौकी से सामान पीठ पर ढोकर घर बनाया था। इस त्रासदी में सब तबाह हो गया। सुरक्षित जमीन है ही नहीं। पुराना घर उखाड़ा और नया बनाया, लेकिन सरकारी भूमि पर आने से मुआवजा भी नहीं मिला। - समारू राम, भेला

मकान पूरी तरह तबाह हो गया। दस लोगों का परिवार है। तीन महीने से शेड में रह रहे हैं। पहले ससुराल में थे, अब जगह नहीं तो शेड के साथ ही मकान बनाना शुरू किया है। जो पैसा मिला, उसी से किसी तरह घर खड़ा कर रहे हैं। क्वार्टर में इतने लोगों का रहना बहुत मुश्किल है।- नोक सिंह, भेला


Comments