हिमाचल प्रदेश में भूजल की मात्रा लगातार घट रही है। जो चिंता का मुद्दा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट में दिखाए गए आंकड़े ऐसे नहीं हैं जो हम बता रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश में आने वाले समय में भूजल को लेकर चिंता बढ़ सकती है। केंद्रीय भूजल बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 4 जिलों कांगड़ा, ऊना, सोलन और सिरमौर के कुछ इलाकों में भूजल स्तर नीचे जा रहा है। भूजल 20 मीटर यानी 60 फुट से ज्यादा गहराई में पहुंच चुका है। इनमें कांगड़ा के नूरपुर, इंदौरा व पालमपुर घाटी का कुछ क्षेत्र, सोलन की नालागढ़ बेल्ट, सिरमौर की पांवटा वैली और ऊना के हरोली,गगरेट,अंब व सदर क्षेत्र शामिल हैं।
2024 में मानसून सीजन के बाद इन जिलों का 12.69 प्रतिशत क्षेत्र ऐसा था, जहां भूजल स्तर 20 मीटर से नीचे चला गया था। प्री-मानसून 2025 में यह आंकड़ा बढ़कर 15.02 प्रतिशत तक पहुंच गया। इस साल अच्छी बारिश के बाद गहरे भूजल वाले क्षेत्रों का दायरा घटकर 10.89 प्रतिशत रह गया है। मानसून ने इन जिलों को राहत तो दी है,लेकिन संकट पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के उत्तरी हिमालय क्षेत्र धर्मशाला ने अगस्त 2025 में कुल 218 जल स्रोतों की निगरानी की। इनमें 127 खुदे हुए कुएं, 66 पाइजोमीटर (भूजल स्तर और प्रवाह पैटर्न निर्धारण) और 25 प्राकृतिक झरने शामिल हैं।
89.11 प्रतिशत भूभाग में भूजल स्तर 20 मीटर से कम गहराई पर
नेशनल ग्राउंड वाटर मॉनीटरिंग प्रोग्राम के तहत तैयार रिपोर्ट बताती है कि हिमाचल के 89.11 प्रतिशत क्षेत्र में भूजल स्तर 20 मीटर से कम गहराई पर है, जबकि केवल 10.89 प्रतिशत क्षेत्र में ही जलस्तर 20 मीटर से अधिक गहराई पर पाया गया है। 20 मीटर से अधिक गहराई भूजल में गिरावट को दर्शाती है।
गिरावट की बड़ी वजह
रिपोर्ट के मुताबिक आबादी बढ़ने, निर्माण कार्य और पानी की बढ़ती मांग के कारण भूजल पर निर्भरता बढ़ी है। बारिश अब नियमित नहीं रही। कम समय में तेज़ बारिश के कारण पानी बहकर ज़मीन के अंदर नहीं जा पाता। इससे भूजल रिचार्ज कमजोर हो रहा है। परंपरागत जल स्रोत जैसे नाले, बावड़ियां और झरने सूख रहे हैं। इनके कमजोर होने से ग्रामीण आबादी की निर्भरता भी भूजल पर बढ़ी है।
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